मैं ठहरा परदेसी
मैं ठहरा परदेसी
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पत्नी ज्वर से तड़प रही
बच्चे पापा को तरसे रे
मैं ठहरा परदेसी
आंखें झर झर मेरी बरसे रे।
हाल जिया का किसे कहें
किसको दुःख अनंत सुनाएं रे
पैरों में जंजीर लगे
कैसे हम घर को जाएं रे।
सपने सब कुर्बान हो गए
पहले ही सफ़र से रे
मैं ठहरा परदेसी
आंखें झर झर मेरी बरसे रे।।
हूँ ऐसा मजदूर समय का
करता मैं मजदूरी रे
हालत पीछे पड़ी मेरे
कुछ ऐसी है मजबूरी रे।
घर के लिए मैं निकल पड़ा था
एक दिन अपने घर से रे।
मैं ठहरा परदेसी
आंखें झर झर मेरी बरसे रे।।