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अमित प्रेमशंकर

Tragedy Others

4  

अमित प्रेमशंकर

Tragedy Others

मैं ठहरा परदेसी

मैं ठहरा परदेसी

1 min
328



पत्नी ज्वर से तड़प रही

बच्चे पापा को तरसे रे

मैं ठहरा परदेसी

आंखें झर झर मेरी बरसे रे।


हाल जिया का किसे कहें

किसको दुःख अनंत सुनाएं रे

पैरों में जंजीर लगे

कैसे हम घर को जाएं रे।

सपने सब कुर्बान हो गए

पहले ही सफ़र से रे

मैं ठहरा परदेसी

आंखें झर झर मेरी बरसे रे।।


हूँ ऐसा मजदूर समय का

करता मैं मजदूरी रे

हालत पीछे पड़ी मेरे 

कुछ ऐसी है मजबूरी रे।

घर के लिए मैं निकल पड़ा था

एक दिन अपने घर से रे।

मैं ठहरा परदेसी

आंखें झर झर मेरी बरसे रे।।




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