निर्लज्ज
निर्लज्ज
निज शपथ का भान नहीं
हमको क्या कर्म सिखाएंगे।
निर्लज्ज बनकर औरों पर
ये क्या क्या दोष लगाएंगे।।
स्वयं पथिक हम उस पथ के
जिस पथ में कांटे कांटे थे।
भूल गए वो दिन भला
जब कौर भी हमने बांटे थे
बने बनाए पथ चलकर
ये क्या उपदेश पढ़ाएंगे
निर्लज्ज बनकर औरों पर
ये क्या क्या दोष लगाएंगे।।
तर्क हमारा पेशा है
पेशे में अपने माहिर हैं
अभी तो ये हकलाते हैं
और शब्दों के हम ताहिर हैं।
झूठी तालीम से जग पर
ये कितना रौब जमाएंगे
निर्लज्ज बनकर औरों पर
ये क्या क्या दोष लगाएंगे।।
