STORYMIRROR

Laxmi Sharma

Romance

4  

Laxmi Sharma

Romance

विरह और बसंत

विरह और बसंत

1 min
714

रोती फिरती राधिका अजहु श्याम ना आए।

विरह अगन में तप रही मोहे ऋतुराज ना भाये।।


पीत वर्ण काया भयी सरसों के फूलों सी।

आंखों में है लालिमा ज्यों ढलते सूरज सी।

बाते बहकी बहकी है ज्यों बसंती हवाएं।

रोती फिरती....................

 

फूले सरसों खेत में कोयल गीत सुनाए।

मंद मंद बहती पवन तन में अगन लगाए।

हिय में विरह की वेदना उपर से मुस्काए।

रोती फिरती राधिका.................

 

करती मै स्वागत तेरा हे ऋतुराज बसंत।

मेरे घर पर भी अगर आ जाते मेरे कंत।

विरह वेदना यो बड़ी घर अंगना ना सुहाए।

रोती फिरती राधिका.............


"श्री"मन बावरी हो गई रटते श्याम ही श्याम।

ना जाने किते प्रेम में उलझे है घनश्याम।

निष्ठुर ऐसे हो गए कान्हा प्रीत मेरी बिसराए।

रोती फिरती राधिका.................


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Romance