आया बसंत
आया बसंत
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सरसों फुली खेत में झूम उठे खलिहान।
शाम सुहानी लग रही कलरव करे विहान।।
मंद मंद चलती पवन झीनी पड़े फुहार।
इंद्रधनुषी अम्बर भया धरती करे सिंगार।।
कलियों पे भारी पड़ी भौरों की गूंजार।
प्रेम गलिन में छा गई फिर से नहीं बाहर।।
धूप सुहानी लाग रही है जन जन को है आज।
पंछी भी सब मुग्ध है मोर नाचते नाच।।
प्रकृति सुहानी हो गई रती-मदन
का मेल।
पल पल रंग बदलता बिधना तेरा खेल।।
