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Ramashankar Roy 'शंकर केहरी'

Classics

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Ramashankar Roy 'शंकर केहरी'

Classics

विधान के नरहरि

विधान के नरहरि

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संविधान का विधान

किसने किसके लिए क्या सोच बनाया

उसकी स्वार्थी ब्याख्या हमने अपनाया।

इसमे प्रदत्त अधिकार मांगे सब

अपेक्षित कर्तव्य की सुध लेंगे कब।


जागो उठो चलो ऐ जनतंत्र के प्रहरी

जिना दुभर न कर दे विधान के नरहरि।।

इतिहास का प्रथम गणतंत्र दिया हमने

उसकी आत्मा को तार तार किया आपने।


हमारा वैधानिक कर्तव्य ही वह धुरी है

जिन बीन सर्वजन अधिकार अधूरी है।

जागो उठो चलो ऐ जनतंत्र के प्रहरी

जिना दुभर न कर दे विधान के नरहरि।।


चौकन्ना हो चिंतन करो स्वराष्ट्रहित की

समझ हो वैचारिकअतिरेक तिलिस्म की।

महारथी हैं वो गलत को सही समझाने में

युवा शक्ति को व्यर्थ ही बहकाने में।


जागो उठो चलो ऐ जनतंत्र के प्रहरी

जिना दुभर न कर दे विधान के नरहरि।।

दुर्योधन की प्रजा बहुत खुशहाल थी

फिर भी दिल मे रामराज की चाह थी।


महाराणा के राज में मेवाड़ बेहाल था

स्वाभिमान के लिए पर हर सितम कबुल था।

जागो उठो चलो ऐ जनतंत्र के प्रहरी

जिना दुभर न कर दे विधान के नरहरि।।


रणक्षेत्र सज रहा नए महाभारत का

शस्त्र बनेगा शोषित वंचित दलित का।

दोषपूर्ण होगी तटस्थता उड़पी नरेश सा

बुद्धिमत्ता नही शहीद होना अभिमन्यु सा।


जागो उठो चलो ऐ जनतंत्र के प्रहरी

जिना दुभर न कर दे विधान के नरहरि।।

नहीं वक्त डर-डर मर-मर कर जीने का

लेना होगा हिसाब बहे हर खून पसीने का।


हिस्सा बन जाए धर्मयुद्ध की नयी कहानी का

दिखा दें वफादारी का जज्बा मिट्टी पानी का।

जागो उठो चलो ऐ जनतंत्र के प्रहरी

जिना दुभर न कर दे विधान के नरहरि।।


कबतक जाती धर्म के हँसिये से कटते रहोगे

धान गेंहू के बोझों की तरह बोझ बनते रहोगे

समाज तुम  से है  समाज से तुम नही

मत चूको चौहान अब नही तो कभी नही।


जागो उठो चलो ऐ जनतंत्र के प्रहरी

जिना दुभर न कर दे विधान के नरहरि।।


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