विदाई--एक सत्य लघु कहानी
विदाई--एक सत्य लघु कहानी
मेरी एक मौसरी बहिन थी। बचपन में अक्सर छुट्टियों में मौसी के यहां चला जाता था और अपने मौसरी बहिन के साथ खेलता रहता था।बात बात में झगड़ा करता हलांकि आज महसूस कर रहा हूं कि गलती मेरी ही रहती थी क्योंकि अक्सर उसके खिलोने लेकर मैं ही भाग जाता था और वह पीछे - पीछे - - धीरे धीरे बड़ा हुआ तो बचपन उड़न छू हो गया - - अब झगड़ा का गोलपोस्ट बदल गया था। अब छुट्टियों में जब जाता तो वह जानबूझकर ढेर सारी कहानियों के मैग्जीन अलमारी से निकाल कर टेबिल पर रख देती क्योंकि मेरी कहानियां पढ़ने की आदत थी और बाद में जो किताब में पढ़ता, उसको भी उसी समय वह पढ़नी होती और फिर हम दोनों में झगड़ा शुरू हो जाता।
मौसी जी जानती थी कि हम दोनों जितना झगड़ते हैं, उससे अधिक प्यार भी करते हैं क्योंकि जब छुट्टियों में नहीं जा पाता तो मौसी जी की खबर आ जाती कि रश्मि बार बार पूंछ रही है कि भैया कब आयेंगे--और मैं आ जाता तो ऐसे ही लड़ते-हंसते छुट्टियां गुजर जाती।
अब हम और बड़े हो गये थे। मैं कालेज में आ गया था और वह भी। उसकी शादी फिक्स हो गयी तो मुझे खुशी के साथ दुख भी हुआ कि अब मैं उससे छुट्टियों में ऐसे नहीं मिल पाऊंगा। खैर शादी की तैयारियों में भी जुट गया और उसे चिढ़ाता कि तेरा होने वाला हसबैंड बहुत पीता है--कभी कभी तो आवारागर्दी करते भी पकड़ा गया--वह गुस्सा होकर मौसा-मौसी से पूंछती तो वह समझ जाते कि मैंने उसे चिढ़ाने की कारस्तानी की है। खैर धूमधाम से शादी हुई, विदा के समय वह सबसे मिल रही थी और सभी रो रहे थे--और मुझे उसकी रोने की हालत देखकर हंसी छूट रही थी।
लेकिन मेरा नंबर भी आने वाला था--मैंने पास में रखी मसालदानी में एक उंगली से पिसी लाल मिर्च को छू कर अपनी आंख में लगाया ताकि कुछ नकली आंसू गिराकर अपना दुख भी दिखा सकूं लेकिन वह तीखी लाल मिर्च ने ऐसा कमाल किया कि उसके जाने के बाद भी आंसू रूक नहीं रहे थे, आंखें लाल हो गयीं---सब यही कह रहे थे कि सबसे ज्यादा दुख अपनी बहिन का जाने का मुझे ही हुआ है। अब मैं कैसे बताता कि यह उसके जाने का दुख नहीं बल्कि - -