पति
पति
मौत का रोज हिसाब करता हूं,
पति हूं रोज पत्नी से लड़ता हूं।
थोड़ा डरता हूं, फिर भी रोज सामना करता हूं,
चक्की के पाटो के बीच रोज पिसता हूं।
मगर तब भी खुश दिखता हूं,
बाहर शेर, अन्दर भीगी बिल्ली दिखता हूं।
शापिंग, तनख्वाह की धज्जियां उड़ाती है,
पत्नी खरीदारी करते समय बहुत प्रसन्न नजर आती है।
किस्मत फूटती है तो ये कोहराम मचता है,
भाग्य-विधाता भी ना जाने कैसे कैसे खेल रचता है।
ट्रैक्टर के पहिये के साथ, साइकिल का पहिया लगा दिया है,
बिना इंजन के गाड़ी को पटरी पर भगा दिया है।
पूर्व-जन्मो की सजा इस जन्म में पाई है,
पत्नी वहीं सात जन्म वाली आई है।
मृदंग की तरह बज रहा हूं,
झूमर की तरह सज रहा हूं।
फूस्सी पटाखे की तरह बज रहा हूं,
निरीह प्राणी हूं, हर गली मोहल्ले में लाचार दिख रहा हूं।
पत्नी मायके जाने की हूल बहुत दिखाती है,
मगर मायके कभी नहीं जाती है।
साली के पति से हमेशा तुलना जताती है,
जहां कुछ कमी निकलती है, पत्नी बहुत सुनाती है
मेरा निकम्मा साला, उसकी आंखों का हीरा है,
मेरे लिए तो वो चाय में पड़ा जीरा है।
मेरी सास इनकमिंग कॉल की तरह आती है,
और तम्बू गढ़ के मेरे घर में बैठ जाती है।
ससुर मेरा बहुत सीधा है,
मेरे सास के अत्याचारों से वो भी संजीदा है।
हजारों में तनख्वाह आती है,
बीबी के पास आ के कही गुम जाती है।
प्रधानमंत्री गृहमंत्री के सामने झुकता है,
गृहस्थी का खेल निरन्तर यूं ही चलता है।