STORYMIRROR

मुर्गी पर बरगद का पेड़

मुर्गी पर बरगद का पेड़

1 min
14.5K


आज की कविता बीज खा गई


बरगद का मुर्गी कोई।


खाद मिला पानी पीकर


फिर नीम तले जाकर सोई।।


कुछ दिन पीछे उगा पीठ पर


पेड़ बड़ा पत्ते हिलते।


धूप सताती थी तब जिनको


साथ उसी के थे चलते।।


लगी फैलने तब शाखाएँ


मोटी-मोटी और भरी-भरी।


इक शाखा पँहुची दिल्ली में


दूजी पँहुची पटना नगरी।।


सावन का जब मौसम आया


बच्चों ने बाँध लिए झूले।


इक झूला, झूला दिल्ली में


पटना में भी बच्चे झूले।।


तब सहसा मुर्गी घूम गई


दाएँ को बायाँ कर डाला।


बच्चों के नगर बदल डाले


कर दिया बड़ा गड़बड़-झाला।।


पटना के बच्चे दिल्ली में


दिल्ली के बच्चे पटना में।


माँ-बाप ढूँढ़ते बच्चों को


व्याकुल होकर इस घटना में।।




बच्चे रोते-चिल्लाते हैं


दुख-दर्द भरे दीवाने हैं।


तुम कहाँ गए मइया-बाबा


सब लोग यहाँ बेगाने हैं ।।


जब हाहाकार मचा भारी


धरती डोली आकाश हिला।


ऊपर देखा बेबस होकर


तब जाकर उत्तर एक मिला।।




सुन ‛बालमित्र’ लाचार सभी


बेबसी नज़र बस आती है।


यह रोज़ी-रोटी की मुर्गी


लाखों को रोज़ घुमाती है।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Comedy