कोरोना/लॉक डाउन
कोरोना/लॉक डाउन
नज़्म लिखूँ या बरतन मांजूं कलम चले या कलछी
मन में चलता चौका चूल्हा रोटी दाल और सब्जी
लिखकर कर दूँ दिल को हल्का, इतनी मोहलत मिलती
पहले कर लूँ झाड़ू पोंछा धोऊँ सुखा लूँ भाजी
लॉक डाउन में सब हैं घर पे लगा हुआ है मेला
लिख न पाऊँ कोई कविता वक़्त न मिले अकेला
कोरोना ने आफ़त ढाई अब लेखन न हो पाये
आये जल्दी से कामवाली कुछ तो राहत आये
किसी एक की करनी भुगते आज ये दुनिया सारी
राम बचाये इस जग को अब मिट जाए महामारी
कलम शांत है मन अशांत है जाने कल क्या होना
विकट समय है सब आक्रांत हैं जाए अब ये कोरोना।