चीटिंग
चीटिंग
जब इग्ज़ैम हॉल में पूर्ण शांती हो ,
जब इनविगिलटोर की निगहें बाहर हो,
तब शुरू होता है ऐन्सर बताने का यह सिलसिला,
चाहे फिर खुद पास हो यह न हो।
हम चाहे पहली सीट पर बैठे हो
पर दूसरे कोने से या रही खासी से,
हमें इशारा मिल जाता है,
मैम की पीठ मुड़ते ही
मानो जैसे पूरा ऐन्सर पेपर मिल जाता है।
पेन लेने की आड़ में पहला प्रश्न दिख जाता है
स्केल गिरकर उठाने के मतलब से,
गणित का प्रश्न दिख जाता है,
मैम देख भी लेती है कभी कबार
पर क्या करे उन्हे भी अपना समय याद या जाता है।
परीक्षा से एक दिन पहले
छोटी-छोटी पर्चियों पर छोटे-छोटे
नोट्स लिख रहे होते है
ऐसी-ऐसी जगह पर्चियाँ छुपाई होती है
की परीक्षा के समय फररे ही ढूंढ रहे होते है।
ऐसे ही दुखी दोस्तों की मदद करके,
हम पुण्य कमा लेते हैं,
पर ऐन्सर बताते हुए भी,
हमरे दिल की धड़कन सौ की स्पीड पे होती है
क्योंकि शायद लोग सही कहते है कि,
मैम की निगहे पीछे भी होती है।
क्लास में मैम की आवाज़ सुनने के लिए
कानों पे आवाज सिर्फ गिरती है
पर इग्ज़ैम हॉल में एक खुसपुसहट
"ओए, प्रश्न 4"
बिल्कुल साफ सुनाई पड़ती है।
क्लास के जिस पढ़ाकू बच्चे को
इतनी घूस दी होती है,
जब उतार बताने से मना करदे
जब दोस्ती पीछे मुड़कर न देखे,
तब जहान की सारी गालियाँ
उन्हीं के लिए निकलती है,
और इतना सब होने के बाद भी
हमारी चीटिंग बेरोक चलती है।
