बीती वो उम्र अच्छी थी
बीती वो उम्र अच्छी थी
करता हुँ शुरूवात बचपन की खुराफात से
मास्टर खौफ खाते बद्तमीजी की औकात से
कुर्सियाँ भिगोके पतलून कर देता गीली
कभी तोड़ पायदान चुलें कर देता ढ़ीली
होलिका में जल गईं मड़हियाँ तमाम
बापू ने बड़ा पीटा पर ना लगी लगाम
फिर आई गबरु जवानी हाय तौबा मच गई
भोला मासूम चेहरा कुड़ियाँ तमाम फँस गईं
फिर आती रोज सिकायत होती रही मरम्मत
पर मैं जरा भी ना सुधरा बढती गई मजम्मत
पर जैसे उम्र बढ रही फिक्रमंद थोड़ा हो रहा
अकेले अपने आप से दुखड़ा अपना रो रहा
जिंदगी भर की खुराफात का भुगतान कर रहा हूँ
बच्चा बाप पर ना जाए बस इसी बात से डर रहा हूँ।
