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Ramashankar Yadav

Abstract Tragedy Classics

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Ramashankar Yadav

Abstract Tragedy Classics

आइना

आइना

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लोग मुझसे थोड़ा दूर से होने लगे हैं

क्युँकि आइना अब जेब में रखता हूँ।


डिंगे मारना युँ ही अघा के वादे करना

ऐसी बातों से लोग थोड़ा बचने लगे हैं


क्युँकि आइना अब जेब में रखता हूँ।

बड़ा मुँहफट है बद्तमिज हो गया है


ऐसी बातों से लोग याद करने लगे हैं

क्युकि आइना अब जेब में रखता हूँ।


झुठी जमघट से मन ममस सा रहा था

कुछ लोग छूटे और कुछ बदलने लगे हैं

क्युँकि आइना अब जेब में रखता हूँ।


बहुत हुआ झूठ सबकी खुशी के लिएॄ

घुटने के बजाय हम खुश होने लगे हैं

क्यूँकि आइना अब जेब में रखता हूँ।


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