काल क्रिया
काल क्रिया
एक अबोध बालक
अरुण अतृप्त
मेरा अनुभव मेरे
प्रारबधिक अनुशासन की
सीमाओं से सीमित हैं।
अनुशंसा की रेखाओं से
घिरा हुआ अनुशंसित हैं।
अटल नहीं है कुछ भी जग में
जग तो पल पल बदल रहा।
जग की इसी प्रतिष्ठित
प्रतिभ प्रतिष्ठा से।
मन मानव का है भीग रहा
आया था सो चला गया।
नवनीत उजस फैला नभ में
चहुं और उजाला लाएगा।
नव अंकुर प्रतिपल धधक रहे
हर तन में शंकित हृदय प्रणय।
छोटी चिड़िया से फुदकरहे
हर कोई यहाँ फिर भी देखो।।
कुछ नया खेल दिखलायेगा
ये युग है परिवर्तनशील सदा।।
बस यही सत्य रह जायेगा
बस यही सत्य रह जायेगा।।