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ritesh deo

Comedy

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ritesh deo

Comedy

गहन दुख

गहन दुख

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देख सखी सजन आज फिर भूखे ही चले गए।

सुबह साठ बजे तक एसी की ठंडक भई और तनक आंख लगी थी।

सपनों की भी तो सुबह-सुबह तभी लगी झड़ी थी।

सखी उठ ना पाई खाना बना ना, और यह भूखे ही निकल गए।

भरी हुई अंखियों से सुबह दफ्तर में पिया को जब वीडियो कॉल किया ‌।

राज कचोरी हल्दीराम की उनकी टेबल पर पड़ी थी।

कटी हुई तोरी निगोड़ी फ्रिज में मेरे बनाने के लिए पड़ी थी।

तभी दुख गहन ही हो गया, मैं तो खाऊं तोरी टिंडा और वहां प्लेटें समोसों से भी भरी थी।

सखी वादा है तो से, कल से जल्दी ही उठ जाऊंगी।

ना खान दूंगी उसे होटल से पकवान

घर का साग और टिंडे तोरी ही खिलाऊंगी।


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