वह पल (एक नज़म )
वह पल (एक नज़म )


ए चाँद ज़रा तू धीमे हो जा
बादलों के पीछे जाके तू छुप जा
दीदार करूँ मैं अपने चाँद का
हौले से आके फिर तू लौट आ
मुद्दतों से नहीं हुई है मुलाकात
रूबरू होने दे उनसे मुझे ज़रा
दीदार में आँखें बेताब है इतनी
लम्हें यह बिताऊं कैसे थोड़ा बता जा
सूरत में उसकी नूर है इतना
ए चाँद तू भी शरमाएगा
गहरापन ऐसा उसकी आँखों का
समुन्दर का भी सर झुक जायेगा
मदहोश कहीं मैं हो न जाऊँ
जब दीदार उसका हो जायेगा
बाँहों में जब भर लूँगा उससे मैं
ए घटाओ ज़रा तुम संभाल लेना
आज सुकून रूह को मिल जायेगा
मिलन का वह पल जब सामने होगा
रुत और फ़िज़ाएं हक़ में हैं मेरी
मुक़्कमल आज मेरा जीना होगा...