वेदना
वेदना
इस पल जो तेरी साँसें थम सी गई हैं ,
इस घड़ी जो ये नब्ज़ जम सी गई है,
कैसी ये वेदना है ?
काल के आगे मौत ठन सी गई है।
खबर कैसे दें अपनी,खुद की खबर की सुध नहीं है।
दिल की आवाज़ भी सुनाई दे कैसे,धड़कन भी तो थम सी गयी है।
किसे होश है अपना,जब जान अपनी निकल सी गई है।
पुकारता है कोई उसे,पुकार भी धीमी पड़ गई है,
दुनिया से जाने वाले की,डगर किसी को मिली नहीं है।
हलचल रहती थी जहाँ,आज वह सुनसान पड़ गई है।
रुदन की चित्कार है,मगर कोई आवाज़ नहीं है।
शांत हो गया है सब,मगर ये मन शांत नहीं है।
व्याकुल हैं सब यहाँ,मगर चंचलता का आभास नहीं है।
कोई चैन की नींद सो सके,आज ऐसी रात नहीं है।
चित्त को चट्टान बनाना होगा,सबको साथ मिलाना होगा।
अधूरे रह गए जो कर्त्तव्य अनेक,उन्हें अब तुम्हे निभाना होगा।
स्मृतियों की उठती लहरों को हिम्मत अपनी बनाना होगा।
जीवनचक्र के साथ ही चलते, आगे कदम बढ़ाना होगा।