नज़र
नज़र
इक नज़र ने इस नज़र से देखा कि हम खो बैठे,
उस नजर के दीवाने से हो बैठे।
गिले शिकवे कर नजर अंदाज भी करना चाहा ,
पर फिर उस नज़र पर नज़र हार बैठे।
नज़र से नज़र फेरी भी बहुत,
पर नज़र से उतार न सके।
यूँ नज़र डाली हम पर फिर
कि नज़र पर दिल निसार कर बैठे।
उस नजर से जाकर कोई कह दे,
कि हमसे नज़र हटा ले,
कहीं हमें नजर लगाने का इल्ज़ाम ना ले बैठे ।
बस कर है ज़ालिम नजर ,
ना बिन कहे इतनी बातें बोल।
नज़र से रूह तक ना इतना देख,
कुछ रहने दे लफ़्ज़ों का भी मोल।
उस नज़र का मसला क्या है? ना जानें
उस नज़र के कद्रदान बन बैठे।
इक नज़र ने देखा इस क़दर, उस नज़र पर नज़र हार बैठे।
नज़र जो ढूंढती थी उस नज़र को कभी
आज वो उसी से कतराने लगी है।
नज़र मिलाने के ढूंढती थी बहाने कभी,
अब नज़र न आने के बहाने बनाने लगी है।
वो नज़र अब हमसे नज़रें चुराने लगी है,
वो नज़र हमसे दूर जाने लगी है।
वो नज़र अब नज़रें बचाने लगी है,
वो नज़र अब डगमगाने लगी है।
नज़र ऐसी लगी किसी नज़र की,
कि अब फेरने नज़र उनकी लगी है।
हर नज़र ऐसी तकने लगी है,
कि नज़र उनसे अब बचने लगी है।
ये नज़र नज़र का खेल है साहब,
नज़र उलझती कभी बचती दिखी है।
वो नज़र जहाँ भी रहे,बस खैरियत रहे,
इस नज़र की यही बंदगी है।

