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swati Balurkar " sakhi "

Romance Tragedy

3  

swati Balurkar " sakhi "

Romance Tragedy

वापसी

वापसी

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तुम जा रहे थे,

शायद सब कुछ छोड़कर,

हमेशा के लिये...


एक बार गर मुड़ जाते,

तो तुम देख लेते

वो जो दो आँसू रुके थे पलकों पर...


मुड़ने पर कान भी सुन लेते,

वो आह ! जो हमने भरी थी,

तुम्हें जाते देख !


गर मुड़ जाते तो पाते

मुझे वहीं खड़ी

उसी मोड़ पर

राह तकते तुम्हारी।


मुड़ जाते तो शायद

भूल भी जाते

वो गिले शिकवे और

वो जाने की वजह !


मुड़ने से ये भी

समझ जाते ना जानम

जिंदगी बेहतर बन सकती है,

बोझ नहीं !


दिल पूछता रहा,

क्या ज़रूरत है जाने की ?

शायद वो सिसकी,

वो आह सुनी तुम्हारे दिल ने,


वो मेरे आँसू भी

तुम्हारी पीठ भिगो गये. .

जुबाँ तो खामोश ही थी

वैसे भी क्या बोलती

तुम्हारे जाने पर ?


मैने बुलाया नहीं तुम्हें वापस...

पर दिल की पुकार

पहुँची तुम तक,


उफ्फ तुम ठिठके,

फिर रुके, फिर मुडे़,

अब चेहरे पर

मुसकुराहट थी तुम्हारे !


सोचा, फिर लौटने लगे

मेरी तरफ...

ये थी तुम्हारे -मेरे

प्यार की वापसी !


पता था हमें,

दिल की लगी है जनाब

एक बार लगी,

तो बुझती नहीं !


ना हम जी पाते तुम्हारे बगैर,

ना तुम जी पाते

हमें दिल में रखकर !


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