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Preeti Sharma "ASEEM"

Tragedy

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Preeti Sharma "ASEEM"

Tragedy

उस रोज़..... कयामत

उस रोज़..... कयामत

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उस रोज़ कयामत दबें पांव मेरे घर तक आई थी।

इंसान का मानता हूँ.....

कोई वजूद नहीं।

उस रब ने साथ मिलकर मेरी हस्ती मिटाई थी।


उस रोज़ कयामत दबें पांव मेरे घर तक आई थी।

शगुन -अपशकुन की,

कोई बात ना आई थी।

समझ ही ना पाया,

किसने नज़र लगाई।

किसने नज़र चुराई थी।


उस रोज़ कयामत दबें पांव मेरे घर तक आई थी।

ना दुआओं ने असर दिखाया।

ना ज्योतिषी कोई गिन पाया।

ना हवन - पूजन काम आया।

ना मन्नत का कोई धागा किस्मत बदल पाया।


उस रोज़ कयामत दबें पांव मेरे घर तक आई थी।

सजदे में जिसके हम थे।

लगता था .....नहीं कोई गम थे।

उसने भी हाथ छोड़ा।

विश्वास ऐसा तोड़ा।

जिंदगी ने, मार कर फिर से जिन्दा छोड़ा।


उस रोज़ कयामत दबें पांव मेरे घर तक आई थी।

मैं समझा नहीं..... क्योंकि

अनगिनत विश्वाशों.... ने आँखों पर 

एक गहरी परत चढ़ाई थी।

रब है....... कहाँ!!!!!!!

कहाँ.......उसकी सुनवाई थी।



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