उन्मुक्त
उन्मुक्त
बहुत उन्मुक्तता भरी है इस मन में
मैं पकड़ती हूँ
तो ये बाँह छुड़ा कर भागता है
दबाती हूँ इसको तो
थोड़ी सी जगह से ही
निकलने को बेताब हो जाता है
मुश्किल हो जाता है रखना
इसको काबू में..
न जाने क्यों बहुत ही
मनमाना से हो गया है ये
मेरी मनमर्जी का अब इसे
कोई ख्याल ही नहीं
चला जा रहा है
अपनी ही मस्ती में
बहा जा रहा है
अपनी ही भावनाओं में..