उल्फ़त का अजीब तराना है
उल्फ़त का अजीब तराना है
उल्फ़त का अजीब तराना हैं,
संगदिल सनम की चाहत में,
हर अरमान हमने गवाया हैं,
कसी महफ़िल में सुर्ख बिटोरते हैं,
दर्द से खुद ही टूटते बिखरते हैं,
महज चंद लम्हो की आरजू ने,
तबाह हमे सरेआम किया,
जिसे चाहा जमाने से बढ़कर,
उसी ने थोड़ी खुशी के लिए,
क्या खूब बर्बाद किया,
अपने हर मौसम हर मिजाज बदल कर,
खोया रहता हूँ उसके ख्यालो में खो कर,
मैं मैं ना रहा उसका हो कर,
किसी बेचैन रूह का किनारा हूं,
दर बदर भटके वो फिज़ा आवारा हूं,
क्या खूब लिखा है किसी ने,
नगमे मोहब्बत के इस कदर,
इश्क़ में सब अच्छा पर,
अच्छा नहीं सराफत हैं,
रिश्ते तो दिल से निभाए जाते हैं,
फरमाये जाने वाले रिश्ते,
रिश्ते नहीं फकत एक बनावट हैं ।