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VEENU AHUJA

Tragedy

4  

VEENU AHUJA

Tragedy

मज़हब के बंधन

मज़हब के बंधन

4 mins
437


वो भयानक रात ....


उस दिन पहली बार डर से सामना हुआ था ..

'

डर .. जिसका कारण बाहर था किंतु जो भीतर से निकलकर माहौल को और डरावना बना रहा था .


शाम के कोई छः साढ़े छः बजे का समय

हल्की हल्की ठंडी सुरमई शाम की शुरुआत .


भाई एकदम से बाहर से आया था

रसोई में जाकर उसने कुछ माँ को बताया ..


हड़बड़ी में दोनो रसोई से बाहर आए थे .

माँ ने जल्दी जल्दी जैसे तैसे काम आधा छोड़ा

मेरा हाथ पकड़ा और जल्दी.. जल्दी भाई के साथ बाहर की ओर लगभग भागी ..

जाते-जाते सारे घर की बत्ती बंद करती जा रही थी ..

अन्य दिनों के विपरीत उस दिन एक भी लाईट जलती नहीं छोड़ी ..


लड़की अनमनी ..

वास्तविक स्थिति से अनभिज्ञ ..

जिज्ञासा से रुकती ..

माँ ने लगभग घसीटा ..

अभी चलो ..

कहां .. ??

बात मत करो ...


हम . कोई तीन-चार घर छोड़ मुनिया काकी के घर पहुंचे


कच्ची मिट्टी और लखोड़ी से बने उसके घर में एक तहखाना था ..

एक कुआं भी था ..

जहाँ झाकते लड़की को चक्कर आता ?


अंदर . अंदर अंधेरे में .. एकदूसरे की आहट से अंदाजा लगाते हम उसी तहखाने में पहुंचे थे ...


आवाजों की घुसफुस से पता चला ...


वही पीछे वाली चुन्नी ताई और वो बिट्टी की मम्मी अरें ! गुडिया की बड़ी ताई और कई आण्टियां थीं ..

बच्चो में शायद वो लड़की ही थी ..


भाई उन्हें वहाँ छोड़ माँ को कान में कुछ कहकर चला गया ..

पीछे से किसी ने कहा ..

अरे . ! सड़क पर गोलियां चल रही है .. ?


हां ! मैने तो आवाज भी सुनी ..

कह रहे हैं .. कई लोग मारे गए ...


शश ... चुप रहो ..


कुछ देर सन्नाटा ?




और यहां आए तो ?


पुराना कमजोर कुंडी में अटका दरवाजा एक झटके में टूट जाएगा ...



सबकी सांस ऊपर ही अटक गयी ...

उस घुप्प अंधेरे कमरे में कई सांसों की ध्वनि तीव्रता से गूंज उठी ...

एक उत्ताल लहर की गिरती आवाज़ साफ महसूस हुयी ..

एक दूसरे से छूते हाथ .. ठंड को छूकर और ठंडे हो रहे थे ....


: . हम्म तो ई कुवां मा कूद जईबे ... बूढ़ी दादी फुसफुसाते हुए बोली ही ..

कि ..

किसी ने उस लड़खड़ाते दरवाजे पर लात मारी ..

कमीने .. अब बत्तियां बंद कर छुपे बैठे है ..

सबको सांप सूंघ गया ..

एक ..

दो ..

पांच .. सेकण्ड


पीछे से कोई बुसबुसाया

गए ... गए ..


एक बार फिर कई सांसों के समवेत स्वर उस गुफा से कमरे में चहलकदमी करने लगे ..


कुछ देर बाद ..


. हां यही सही है ..


अपनी इज्जत नहीं जाने देगें ..

इसी कुएं में सब कूद जाएगे ....


लड़की ने मां का हाथ जोड़ से दबाया ..

अंधेरे में ही मां ने उसे आंचल में छिपा लिया ..

सिसकी उछल निकली ..


दाएंसे अरे .. कौन है ?

सबको मरवाएगी क्या ?

एक हिचकी आयी और सब शांत ...

दो ! चार घंटे शायद ऐसे ही कटे ..

न किसी को भूख का एहसास ..

न पानी की जरूरत ..

डर ने सारी आवश्यकताओं को धमका दिया था ...


एक बार फिर ..

कोई तीन चार लोग ... गालियों की बौछार ..

डगमगाते पैर ..

एक - दो तीन लातें ..

दो हाथ और एक शायद लट्ठ याडंडा ..

तभी ठाय ! की गोली की आवाज़ ...


भीतर सरसराहट फैल गयी ...

काकी .... कुएं की ओर चलें ..


लड़की को पद्मावती का जौहर याद आया ..


रुक .. देख ले .. शायद ...


श्रीराम को याद कर ..

एक साथ कई सांसो में प्रभु राम का नाम स्पंदित होने लगा ...

लड़की .. मन में .. कुएं में ?

यह तो कायरता होगी ?

क्या सब मिलकर डंडे से पीट नहीं सकते ?

उस अंधेरे में वार्तालाप की कोई गुंजाईश नहीं .. फिर

डंडे भी आत्मविश्वासी हाथों में बल पाते है?


पूरी रात इसी डर के साए में कटी ... बीच बीच में दरवाजे पर आहट .. लातें .. डंडे .. गालियां चलती रही ...

हर धमक पर कई सांसे ऊपर चढ़ती कुछ की गिरती कुछ की बीच में अटकी रह जाती ..

दो ..एक .. अचेत पर गयी ..


सुबह चार बजे ...


बाहर जोर जोर की आवाजें ..


हाय अल्लाह !


करमजलों ने घर के चिराग को बुझा डाला ...


ला रहे है .... पुलिस से मुठभेड़ ... में ..



कहा था ... न जाओ !


अरे कमबख्तो कम से कम अट्ठारह वसंत तो देखने देते मेरे लाल को ...

क्यो ले गए उसे भी साथ ...

सामने वाली शन्नो चाची की दिन चीरने वाली आवाज़ ...


सुहैब का मासूम चेहरा सबके आंखों में घूम गया ..

शायद सभी आंखे पनीली हो गयी .


तभी धड़ धड . कई लोग दरवाजा पीटने लगे .. कच्ची दिवार से अटका पेंच खुल गया था ..


कमरे में कई शरीर खड़े हो गए ..


अब कुएं के अलावा कोई चारा नहीं .

तभी एक आवाज़ ने मज़हब के सारे बंधन खोल दिए ...


शन्नो चाची ... हट जाओ , उस दरवाजे से ...

मुहल्ले में कुछ नहीं करना ...


बाजी लेकिन .. कई आवाजें ...


मेरी लाश की रुखसती करनी हो तो यहां कुछ करने की सोचना ...



भीतर की ओर आती चाची की आवाज ...


आप लोग निश्चिंत रहें ..

झगड़ा पुलिस से हुआ . है.

आप लोग को कोई कुछ नहीं करेगा ..


दो घंटे बाद भाई के साथ सुरक्षित हम घर में थे ।

( दंगों के समय की सच्ची घटना पर आधारित )


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