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Alka Nigam

Tragedy Inspirational

4.0  

Alka Nigam

Tragedy Inspirational

इच्छा (मैरिटल रेप)

इच्छा (मैरिटल रेप)

4 mins
411


"दी अपने अंदर के सच को बाहर आने दो,वर्ना ये जलकुंभी बन तुम्हारे मन के जलाशय को दूषित कर देगा।"

"तुम कहना क्या चाहती हो रिया....???"आईने में खुद को निहारती सिया ने अपनी छोटी बहन से पूछा।

"दी आखिर कब तक तुम अपनी खण्ड खण्ड होती गृहस्थी को रफ़ू करती रहोगी??....,कब तक अपनी मुस्कुराहट के पैबन्द से इस तार तार हो चुके रिश्ते को एक कामदनी की चूनर बना लोगों के बीच ओढ़ती रहोगी???"

"अरे वाह!तू तो पूरी कवयित्री हो गयी छोटी....."

सिया एक फीकी सी हँसी के साथ बोली और ऋतुराज का लाया नया सेट पहनने लगी।

"दी सच सच बताना तुम्हें ये सेट पहन के कैसा लग रहा है???"

सिया ने खुद को आईने में देख,यूँ लगा जैसे गले में कोई विषधर लिपटा हो,उसने सिहर के आँखें बंद कर लीं।

अचानक रात का वाक़्या ज़हन में घूम गया.......

"बुखार से जिस्म तप रहा था उसका पर ऋतुराज को तो बस उसकी देह से नेह था।उसके लाख मना करने के बाद भी.....

"क्या सोच रही हो दी,तुम्हारी गर्दन पे पड़े निशान बता रहे हैं कि....."

"बस कर रिया.....वो मुझसे प्यार करते हैं,इसीलिए......."

वो अपनी बात पूरी भी न कर पाई थी कि रिया ने टोक दिया...."दी कितना झूट बोलोगी खुद से....।

"तुम जीजाजी के लिए सिर्फ एक सेक्स स्लेव बन के रह गयी हो,जिन्हें सिर्फ तुम्हारी देह से नेह है न कि मन से...,तुम्हारा मन हो या ना हो....,तुम्हारे जिस्म में ताक़त हो या न हो....,उन्हें सिर्फ अपनी मर्ज़ी करनी होती है।"

"जानती हो कानून की भाषा में इसे मैरिटल रेप कहते हैं .....,ये कानूनन जुर्म है....और ये जो तुम्हारे महंगे महंगे तोहफे हैं न....दरअसल ये हर्जाना है तुम्हारी पीड़ा का।"

सिया निःशब्द थी,आज पहली बार किसी ने उसके मन को न सिर्फ छुआ था बल्कि झिंझोड़ा भी था।

इससे पहले जब भी उसने दबी जुबान में अपनी सास से बोला तो उन्होंने उल्टा झिड़क दिया ये कहके कि...."किस्मत वाली हो जो ऐसा प्यार लुटाने वाला पति मिला,कितने तोहफे देता है तुम्हें और तुम हो कि उसे ख़ुश नहीं रख सकतीं,किसी और के पास चला गया तो बैठी रह जाओगी हाँथ मलते।"

यहाँ तक कि माँ ने भी यही समझाया कि...."पति है वो उसका और उसका हक़ है तुम्हारी देह पे....,खुद भी खुश रह और उसे भी ख़ुश रखे इसी में गृहस्थी की भलाई है।"

"दी कहाँ खो गईं",रिया ने उसे झिंझोड़ा।

ऋतुराज की इसी आदत की वजह से उसे अपने दोनों बच्चों को होस्टल में डालना पड़ा क्योंकि उसे बच्चों का बीच में रहना पसंद नहीं था अपने और सिया दोनों के बीच।

यहाँ तक कि होस्टल से घर आने पर भी वो बच्चों के पास नहीं लेट सकती थी।

रोज़ रोज़ की इस शारीरिक और मानसिक प्रताड़ना से वो त्रस्त हो चुकी थी।

आखिर जैसे तैसे शादी की दसवीं सालगिरह की दावत खत्म हुई....वो पूरी तरह से निढाल हो गयी थी,मानो किसी ने जिस्म को निचोड़ दिया हो।

आज उसका मन किया बच्चों के साथ सोने का,पर ऋतुराज को बर्दाश्त कहाँ....., लगभग घसीटते हुए वो उसे कमरे में ले आया....,वो लगभग गिड़गिड़ाती हुई बोली,"प्लीज़ आज मुझे छोड़ दो",पर वो नहीं माना।

थक चुकी थी वह इस रोज़ रोज़ की ज़िल्लत से और अपने उधड़ते जिस्म से।

न जाने कहाँ से उसके ताक़त आ गयी और उसने ऋतुराज को धक्का दे दिया,वो शायद इनके लिए तैयार नहीं था,इसलिए ज़ोर से गिर पड़ा।

वो जल्दी से कमरे के बाहर निकली और दरवाजा बाहर से बंद कर लिया।

अंदर से ऋतुराज चिल्ला रहा था पर उसने नहीं खोला।अचानक शोर सुन बच्चे, रिया,उसकी सास व माँ भी आ गईं।

सास जो सब कुछ समझ चुकीं थीं मुँह बना कर बोली,"अरे आज काहे की आफ़त आज तो शादी की सालगिरह है फिर उसने इतना महंगा सेट भी तो तुझे लाकर दिया है।"...

"बस माँजी, मैं कोई वैश्या नहीं हूँ जो एक तोहफे के बदले अपना जिस्म उनके हवाले कर दे ,पत्नी हूँ उनकी....अब और बर्दाश्त नहीं होता मुझसे।"ये कहके वो फ़ोन करने लगी।

"अरी किसको फोन कर रही हो"....सास चिल्ला के बोली।

"पुलिस को"बेहद ठंडे पर द्रढ़ स्वर में वो बोली"।

"क्या ???इस बात के लिए तू पुलिस को बुलायेगी??...क्या।कहेगी की तेरा पति तुझसे सम्बन्ध बनाना चाहता है और तुझे पसन्द नहीं?....भला इसमें पुलिस क्या करेगी?"

"ये तो पुलिस ही बताएगी आँटी",रिया बोली।

अगले कुछ दिन सिया के लिए बेहद कष्टप्रद थे।इन चंद दिनों में न सिर्फ उसे लोगों की सवालिया नज़रे झेलनी पड़ी बल्कि लोगों की हँसी का पात्र भी बनना पड़ा

क्योंकि आज भी समाज में एक पत्नी की इच्छा का कोई महत्व नहीं है,पति को ये हक़ है कि वो उससे शारीरिक संबंध बना ले,फिर चाहे पत्नी का मन हो या न हो।

रिया हर पल उसके साथ खड़ी रही और आख़िरकार उसे ऋतुराज से तलाक मिल गया।

दुनिया चाहे उसे जो समझे या कहे पर आज वो अपने इस फैसले से ख़ुश है,उसके दोनों बच्चे भी अब उसके पास हैं।

ये एक सही निर्णय था जो उसने वक़्त रहते लिया था।



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