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सोनी गुप्ता

Tragedy

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सोनी गुप्ता

Tragedy

वक्त के साथ बदलते रिश्ते

वक्त के साथ बदलते रिश्ते

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वक्त निकलता जा रहा कैसी बेतहाशा ये दौड़ है, 

सभी को जिंदगी की रेस में आगे निकलने की होड़ है!!


रात दिन बस जिंदगी को इतना कर दिया व्यस्त, 

अपनों के लिए अपनों को छोड़ा यह कैसी गठजोड़ है!!


सुबह का निकला हुआ, जिंदगी की भाग दौड़ में

वर्तमान खोता जा रहा है, भविष्य बनाने की होड़ है!!


अपनों से रिश्ते तोड़ गैरों से रिश्ते निभाने लगे, 

लगता आज की जिंदगी में यही जिंदगी का निचोड़ है!! 


इंसान भी लगता जैसे मशीनों के पुर्जे बन गए हैं, 

जिस राह पर चला, उसे लगता यही जिंदगी की दौड़ है!! 


इस दौड़ में कितनों को पीछे छोड़ दिया याद नहीं, 

पुराने रिश्ते भूलकर क्या यूँ नए रिश्ते बनाने की होड़ है!! 


खुले आसमान में बैठकर जो बातें किया करते थे, 

आज चार दिवारी में सिमटकर रह गई ,क्या यही होड़ है!! 


लग रहा जैसे बदलते रिश्तों का मौसम बदल गया, 

अब तो यही अहसास ही सबकी जिंदगी का गठजोड़ है!! 



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