उल्लू को इंसान किसने बनाया
उल्लू को इंसान किसने बनाया
उल्लू को इंसान किसने बनाया होगा।
किसकी बस्ती को कहां बसाया होगा।।
शाख पर बैठा उल्लू रोज चिढ़ाता है
एक शोर तो रोज ही उसे भगाता है
विश्वास से जब भी चला अंधेरी राह
उल्लू ने पूरी नहीं होने दी हर चाह।
वो शोर ही तो था कितना मचाया होगा।
उल्लू को इंसान किसने बनाया होगा।।
उल्लू है वो यूं भी मन बहलाता गया
रस्ते भर गीत कोई गुनगुनाता गया
पर ये जो उसकी डराती आवाज थी
मेरी धड़कनें बढ़ाने को पर्याप्त थी।
कुदरत ने सच में इंसान को डराया होगा?
उल्लू को इंसान किसने बनाया होगा।।
वो कहते थे नजरंदाज करता चल
अपने अंदर लंबी सांस भरता चल
पर उल्लू ने मन में यों भ्रम डाला था
भरी दुपहरी में बिछा जैसे पाला था।
मन के वहम ने कितना भरमाया होगा
उल्लू को इंसान किसने बनाया होगा।।
सच है उल्लू तो कुछ नहीं पाया था
गूंजती कर्कश आवाज से डराया था
हो सकता है यही उसका हो स्वभाव
तो क्यों इंसान ने दी उस संज्ञा भाव।
उल्लू का पट्ठा फिर क्यों बताया होगा
उल्लू को इंसान किसने बनाया होगा।।
मन का विकार था जो पलता गया
समाज का बनाया बैर बढ़ता गया
इंसां और उल्लू के बीच कुछ नहीं
इंसान उल्लू नहीं उल्लू इंसान नहीं।
इंसान को उल्लू फिर क्यों बुलाया होगा
उल्लू को इंसान किसने बनाया होगा।।