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Sunita Katyal

Tragedy

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Sunita Katyal

Tragedy

उदास

उदास

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ना चाहते हुए भी

मन फिर उदास है

चारो ओर विषाद है

मन परेशानियां गिनाता है

प्रार्थना से भटकाता है

सोशल मीडिया की मस्ती भी

बचकानी लग रही

मन में खुशी नहीं तो

बाहर कहां से मिलेगी

ये पूजा ,वो पाठ करके

सब देख लिए

चित्त खिन्न और अशांत है

जैसे चुभी कोई फांस है।

ये बीमारी और कठिनाई

खिंचती ही जा रही

इसकी समाप्ति का

दिख रहा ना ठौर है।

शब्द सूखने लगे

नयन नीर भरे

तन्हाई काटने लगी

खुशियां दूर भागने लगी

ऐसे कैसे कटेंगे

दिन रात लंबी हुई जा रही।

इस रात की ना जाने

सहर भी क्या होगी

कभी प्रभु कोई तो

उपाय आकर सुझाओ

हमे इस निराशा के

गर्त से उबार सको

तो उबारो हमें।


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