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Neeraj Mishra

Abstract Drama

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Neeraj Mishra

Abstract Drama

तू मेरा राम हुआ

तू मेरा राम हुआ

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सुख दुख तो सब परछाई है,

जो दिखता तो है पर होता नहीं।

जैसे कैमरे में कैद मेरी छवि,

दिखूँ छवि में पर मैं वहाँ नहीं।


तुझे देखने का सुख किसे मिला,

आँखों ने देखा पर होठ मुस्काए।

जो मुस्काए उसने तो देखा नहीं,

तो फिर ये मन क्यों खुशी मनाए।


ना पाने का दुख किसे मिला यहाँ,

जब पाने का खेल मन का रचा।

अपना तो कुछ भी नहीं था कभी,

तो क्या देखूँ, क्या खोया, क्या बचा।


चलो तुझ पर फोड़ दिया मैने,

अपने सब सुख दुख का ठेका।

पर क्या फायदा ऐसा कर के भी,

जब मैंने कुछ मन से ना फेंका।


देखने में हीरा भी पत्थर ही है,

जब तक कोई उसे तराशे ना।

प्रेम मेरा सिर्फ चाहत ही तो है,

जब तक यह राम तलाशे ना।


पत्थर में राम ढूँढते हैं सब,

पर आज से तू मेरा राम हुआ।

पुजारी बना तेरा ऐसा कर के,

आज बड़ा अच्छा मेरा काम हुआ।


अब तो लगता है कि राम को भी,

आजकल मेरी याद आती है।

तुझ में राम को जो पहचाना है,

राम में मेरी छवि गहराती है।


अब मन तू बता कि और क्या है,

बचा कुछ पाने के लिये यहाँ पे।

अब तो छवि फैली है सब ओर,

कुछ इस तरफ कुछ वहाँ पे।


परछाई है हम सब यहाँ पे,

बस उस एक प्रेमी दिवाने के।

दिखते अलग-अलग लेकिन,

रहते मस्ती में उस मस्ताने के।


अब यार इन्तज़ार कर थोड़ा,

तेरी आँखों का राम बन जाने का।

मेरे मन में बसे तुझ राम से,

तेरे इस राम के मिल जाने का।।


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