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रैट रेस

रैट रेस

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भावहीन यह रसहीन यह,

लिखूँ क्या इस पर कविता आज।

अर्थहीन है शायद मलिन है,

रैट रेस में यह लिप्त समाज।


देखा देखी करने में सब लगे,

ना देखे अपना हुनर कमाल।

लॉजिक लगा के नकल करते,

और खुश होकर बजाते गाल।


क्या भूल गये है सब एक बात,

यहाँ पे सबकी एक कहानी है।

अपनी अपनी कहानी में यहाँ,

हमें आप महक महकानी है।


दूसरों को देख कर जीना यहाँ,

खुद का खुद ही गला दबाना है।

जहाँ पे हर रंग के फूल ना हो,

वहाँ पर किसका आना जाना है।


अपना रंग रुप खुद बनाओ,

यही करतब तो दिख लाना है।

रैट रेस से निकल कर अब,

अपने आत्म स्वरूप को पाना है।


भावपूर्ण यह रसभरा यह,

लिखूँ तभी इस पे कविता आज।

बातें बहुत है अर्थ बहुत है,

सबसे मिलकर बना समाज।


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