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Rekha Rekha

Tragedy

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Rekha Rekha

Tragedy

तुम्हें शर्म नहीं आती

तुम्हें शर्म नहीं आती

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*तुम्हें शर्म नहीं आती*

जब बचपन से उनमें संस्कार नहीं भरती हो।

अपनी ही भूलों को स्वीकार नहीं करती हो।।

*तुम्हें शर्म नहीं आती*

जब अपना दामन बचाने को मोबाइल थमाती हो।

बिटिया को समय न देकर किट्टी पार्टी में जाती हो।।

*तुम्हें शर्म नहीं आती*

स्कूल -कालेज से नहीं कभी- कभी उसे लाती हो।

शापिंग के बहाने बाहर जा अपना पिंड छुड़ाती हो।।

*तुम्हें शर्म नहीं आती*

नहीं वक्त अपना थोड़ा -सा भी बिटिया को देती हो।

सारा का सारा इल्जाम फिर बिटिया पर लगाती हो।।

*तुम्हें शर्म नहीं आती*

जिसको नहीं तुम प्यार से कभी गले लगा समझाती हो।

अपना सभी दोष, समाज या बिटिया पर लगाती हो।।

*तुम्हें शर्म नहीं आती*

उसके 36 टुकड़े तो गिनती हो,क्या माँ-पिता का फर्ज निभाती हो।

आन -बान -शान की बात कर,अपने दोषों को ही छुपाती हो।।

*तुम्हें शर्म नहीं आती*

अपनी गलतियों को उस मासूम बच्ची पर मंडती हो।

क्यूँ बचपन से ही जीने की राह न सीखाती हो।।

हो सके तो हे पितृजन अपना समय उन्हें दो।

यूँ न निज संतति को कटने को कटने को छोड़ दो।


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