आईं आज बरखा रानी
आईं आज बरखा रानी
जाने वो बचपन कहाँ गया?
धूल उड़ाते जाते, मस्ती में गाते
खाते-पीते, बस मौज उड़ाते
नहीं कोई फिक्र सताती थी
न गरमी कभी सताती
पेड़ों पर चढ़ जामुन खाते
आम-तरबूज मजे से खाते
रास्तों में धूल उड़ाते जाते
सर्दी पल में छूमंतर हो जाती
आव जलाकर सर्दी दूर भगाते
और गरमागरम खिचड़ी घृत से खाते
गरम -गरम हलुवा पल में चट कर जाते
बसंत की तो बात न पूछो
फूलों संग खूब खिलखिलाते
रंग-बिरंगी तितलियाँ पकड़ते
हवा में लहराते हुए जाते
बरखा बहार आई सुहानी
चहूँ ओर पानी ही पानी
कागज़ की हम नाव बनाते
फिर नालियों में तैराते जाते
कच्छा -बनियान में नहाते
छककर मालपुए ,गुलगुले खाते
आई आज फिर बरखा रानी
याद आई बचपन की वही कहानी।
