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Rekha Rekha

Romance Fantasy

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Rekha Rekha

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रिश्तों की अलमारी

रिश्तों की अलमारी

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रिश्तों की अलमारी

रिश्तों की अलमारी

आज बहुत दिनों बाद फिर,

खोली मैंने दिल की अलमारी। 


खिली-खिली सी बैठी थी, 

उसमे खूबसूरत रिश्तों की फुलवारी। 

लाल-पीले-हरे- गुलाबी व बैंजनी, 

बचपन के भाई-बहन, दोस्तों की क्यारी।


रूठना-मनाना, हँसना-रोना व एक होना, 

वो दुनिया भी थी,

सबसे अद्भुत- प्यारी। 

फिर थोड़ा बड़ा हुई,

बना रिश्ता अनोखा, वर ढूंँढना,

पिता ने की थी अब तैयारी। 


हुआ ब्याह, ससुराल बना नया घर,

कंथ संग, मैं तो बनी सास की भी प्यारी।

मायका, बचपन,

किशोरावस्था सबसे अलग, रिश्ते -नाते संभालना,

थी भारी जिम्मेदारी।

अब हुई थोडी समझदार व स्यानी, बनी 'माँ,

गुंँजी घर-आँगन किलकारी।सब रिश्तों मे,


सबसे प्यारा रिश्ता, 

आई जीवन बगिया में बिटिया- प्यारी। 

सहेजते-सहेजते रिश्तों की ये अलमारी,

पहुँची फिर एक बार निज बचपन 'कृष्णा' मुरारी।


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