तुम्हारी खातिर
तुम्हारी खातिर
मेरे दिल के कमरे में
वो मीठी -मीठी यादें रखीं हैं
जो अल्हडावस्था में देखी थी
छूकर गले को कसमें खाई थी
जिसे सोचकर
चेहरे पर मुस्कान आए
वो हंसी ख्वाब हो तुम
वो बेतुकी शायरी
जो हमने बनाई थी
के मुझे बस तू चाहिए
ये मत पूछ दोस्त
क्यूँ चाहिए?
आज उस कमरे में गई
और उन यादों को
बड़े प्रेम से प्रेमालिंगन किया
झंकार दिया फिर एक बार
दिल के उन तारों को
जो कहते थे
दूरियाँ एहसास दिलाती हैं
कि तिरी याद बड़ी खास होती है
*पछतावा* आज भी नहीं है
क्योंकि तुम्हारा गुस्सा भी
इतना प्यारा था
कि जीभर तुम्हें परेशां करूँ
न उन यादों से कभी किनारा करूँ
आज हम दोनों वृद्धावस्था में है
याद आता है तुम्हारे होंठों पे
मेरा नाम आना
और दिल का फिर थम जाना
चलों आज उसी हंसी
यादों के कमरे में
चलकर सो जाए
मीठे सुनहले स्वप्नों
में फिर खो जाए
जिदंगी के फलस्फे से दूर
फिर एकबार
उसी अल्हडावस्था
में आ जाए
कि मेरी खातिर तुम
लुट जाओ
तुम्हारी खातिर मैं
लुट जाऊँ
न तुम्हें पछतावा हो
न हमें गमें ताल्लुकात हो ।