अकर्ता भाव
अकर्ता भाव
सद्कर्म करूँ अकर्ता भाव से
विचार-व्यवहार में अतंर न आए
हे प्रभु ज्ञान कर्म हो या कर्मयोग
मुझपे तेरी कृपा सर्वदा हो जाए
देना मेरा साथ कर्मपथ पर तुम
तुझमें मेरी *निष्ठा* हो जाय
किया विश्वास पांचाली ने
तुरंत दिया तुमने चीर बढ़ाय
मन से हारे जब गाण्डीव धारी
सारथी बन तुमने पार लगाय
सखा सुदामा सुखे तंदुल लाए
तुमने सुंदर भव्य महल बनाए
नरसी भक्त तुम्हारे गुण गावै
तुम सुता का अद्भुत भात भरायै
सिर सम्मुख बैठ दुर्योधन माँगी सहाय
तुमनें चतुरांगी सेना दी भिजवायै
भक्त प्रहलाद नमोनारायण उच्चारै
नरसिंह रुप में तुम हिरण्यकश्यप उद्धारै
राणा सांगा मीरा को विष प्याला भिजवायै
विष को तुमने झटपट अमृत दिया बनायै
युद्घ क्षेत्र में अर्जुन निज कर्म से घबराए
गीता-ज्ञान का पाठ दिया तुमने पढ़ाए
बहुविध देखी-सुनी तुम्हरी करुण गाथा
मेरी भी दिन-रैन *कृष्ण* निष्ठा बढ़ती जाए।