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Shirish Pathak

Romance

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Shirish Pathak

Romance

तुम्हारी ख़ामोशी

तुम्हारी ख़ामोशी

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जब भी देखता हूँ तुमको

सोचने लगता हूँ

उस शाम के बारे में

जब तुम खामोश सी होती हो।


तुम गुम रहती हो

उस रेत की तरह

जो आज भी नदी के नीचे है,


जिसको देखते है हम

पानी के लौट जाने पर

लेकिन उसको थाम लेना

आज भी मुश्किल है।


न जाने क्यूँ मैं तुमको

चुपके से क़ैद कर लेना चाहता हूँ

तुम्हारी उदासी को,


तुम्हारे साथ के खामोश लम्हों को

और उन पलों को जब

इन सब के बाद भी तुम मुस्कुराती हो


तुम किरदार होती हो

मेरी किसी आधी पढ़ी किताब की

जिसका कोना मुड़ा हुआ है

इतने सालों के बाद भी,


पलटना चाहता हूँ

मैं उसे आज भी

लेकिन सोचता हूँ

साथ कुछ देर और बिता लूँ।।


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