तुम्हारी खातिर
तुम्हारी खातिर
कह दूँ राज है इक यही
तुम्हें बसाना साँस साँस में
मेरे बेइंतहा प्रीत की चाहत है
रूह को बस यह राहत है
सामने तुम हो सजी संवरी संवरी
लब मौन सही पर कह जाती हो
बातें न जाने कितनी अनकही
हर फुसफुसाहट सुना है मैंने
बदल बदल कर करवट
कशिश में सजन तुम संग
सिमट आगोश में तुम्हारे
धड़कनें गुनगुना उठी
खनक छनक कर मिलन के गीत
सजन बस तुम्हारी खातिर।।
रुको न ऐसे जाओ मत
सजदे में तुम्हारे झुका हूँ
पहुँच तुम तक तो अब रुका हूँ
कहती रहो झुकी पलकों से
अब तो बस तुम्हें ही सुनना है
ख्वाब तुम साथ, कई बुनना है
जहान कह ले जो कहना है
तुम्हारे वजूद की बहती दरिया
कलकल करती वजूद में मेरे
छेड़ती तान प्रीत की नई नई
सजन बस तुम्हारी खातिर।।
अजब सी दास्तान है यह
तिल तिल कर गया बुना
दिल तो दिल जां ने भी तुमको चुना
तुम्हारी काया में घुल मिल जाएंगे
पाकर तुम्हें बस इक यही ख्वाहिश
जन्म जन्म रहो तुम मेरी कामना
हम गीत अप्रतिम प्रीत के गाए
सनम बस तुम्हारी खातिर।।