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Rahul Dwivedi 'Smit'

Romance others abstract

4.9  

Rahul Dwivedi 'Smit'

Romance others abstract

तुम्हारी आँखों में

तुम्हारी आँखों में

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करता हूँ इजहार तुम्हारी आँखों में ।

चाहत का हर बार तुम्हारी आँखों में ।।


कितना कह लो प्यार नही है तुमको, मैं ।

देख रहा हूँ प्यार तुम्हारी आँखों में ।।


झील नहीं है सागर है हाँ माना पर ।

है करुणा की धार तुम्हारी आँखों में ।।


हम दोनों के सपन सलोने बैठे हैं ;

बैठा है संसार तुम्हारी आँखों में ।


मोल अमोल तुम्हारा फिर भी दिखता है ;

मेरा भी अधिकार तुम्हारी आँखों में ।


जिसको चाहो जो कर डालो जागा है ;

एक नया फनकार तुम्हारी आँखों में ।


लब कब तक खामोश रहेंगे, देखा है ;

चाहत का अधिकार तुम्हारी आँखों में ।


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