तुम्हारे नाम चौथा सन्देश
तुम्हारे नाम चौथा सन्देश


नटखट शैतान तू
हमको बहुत सताती है,
पूरा दिन हमें थकाती है
और रातों में भी जगाती है।
कभी हमें घूरती है
तो कभी अलग अलग से
चेहरे बनाती है,
जीभ निकाल कर करती मस्तियाँ
तू हमको खूब चिढ़ाती है।
अकु अकु उहू उहू कर
तू ग़ुबारे और पंखे से बतियाती है,
कभी बिना बात के लगाए ठहाके
तो कभी खूब चिल्लाती है।
पैरों से साइकिल चलाते
तू कंबल को दूर भगाती है,
कभी अपने गालों को नोच
खुद को ही दर्द पहुंचाती है।
सभी उंगलियाँ मुँह में दबाये
अपने ही राग तू गाती है,
नन्ही नन्ही शरारतों से
तू सबके मन को भाती है।