STORYMIRROR

नमिता गुप्ता 'मनसी'

Abstract Romance Fantasy

3  

नमिता गुप्ता 'मनसी'

Abstract Romance Fantasy

तुम्हारे हिस्से के स्पर्श..

तुम्हारे हिस्से के स्पर्श..

1 min
264

मुझमें

तुम्हारे हिस्से की मेरी आंखें

देख रहीं हैं अभी भी

वैसे ही सपने

जैसे तुमने देखने चाहे थे

उन दिनों !!


मुझमें

तुम्हारे हिस्से की "मैं"

अभी भी है

ठीक वैसी ही,

हां, कभी-कभार हो जाती है

थोड़ी सी अनमनी..

थोड़ी उदास..

पर, संभाले रखा है उसे

अब तक !!


सुनो..

मुझमें.. तुम्हारे हिस्से के मेरे स्पर्श

अभी भी जीवंत से हैं 

और अनछुए भी !!



Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract