तुम्हारा यूं दबे पांव चले आना.
तुम्हारा यूं दबे पांव चले आना.
किस तरह कहूं कि निशब्द कर गये तुम
तुम्हारा यूं दबे पांव चले आना ,
अवाक् रही ..चुपचाप रही..
तुम्हारा यूं रंगों को बिखराना !!
आहट भी सुनीं..सुनीं दस्तकें भी
उस शांत नदी में यूं कंकर ढलकाना ,
सहसा बूंदों में सैलाब ले आए
फिर बादल सा सावन बन जाना !!
जब-जब गीली होती थी आंखें
नमी वो तुम तक कैसे जाती ,
मुझसे पहले नम होते तुम
कहो, कैसे सीखा वो सब पढ़ जाना !!

