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नमिता गुप्ता 'मनसी'

Romance

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नमिता गुप्ता 'मनसी'

Romance

तुम्हारा यूं दबे पांव चले आना.

तुम्हारा यूं दबे पांव चले आना.

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किस तरह कहूं कि निशब्द कर गये तुम

तुम्हारा यूं दबे पांव चले आना ,

अवाक् रही ..चुपचाप रही..

तुम्हारा यूं रंगों को बिखराना !!


आहट भी सुनीं..सुनीं दस्तकें भी

उस शांत नदी में यूं कंकर ढलकाना ,

सहसा बूंदों में सैलाब ले आए

फिर बादल सा सावन बन जाना !!


जब-जब गीली होती थी आंखें

नमी वो तुम तक कैसे जाती ,

मुझसे पहले नम होते तुम

कहो, कैसे सीखा वो सब पढ़ जाना !!



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