तुम्हारा साथ निभाऊँगा
तुम्हारा साथ निभाऊँगा
आख़िरी साँस तक तुम्हारा साथ निभाऊँगा
ख़ुशियों भरा हमारा एक आशियां बसाऊँगा
मेरा हर ख़्वाब अब तुझसे मंसूब हो चला है
तिरी आँखों से गम का हर अश्क़ चुराऊँगा
जब ढलने लगेगी किसी रोज ज़िंदगी की शाम
तेरे ख़ामोश लबों पर होगा बस मेरा ही नाम
उम्र छोड़ने लगेगी रानाई ज़िस्म की जब तेरी
साँसें जब पाएंगी अपना आख़िरी अंज़ाम
मेरे हाथों में उस वक़्त भी तेरा ही हाथ होगा
रूह को भी बेचैन धड़कनों का एहसास होगा
मिलेगी मंज़िल सफ़र-ए-ज़ीस्त को मुद्दत बाद
जब ख़्वाहिशों को हासिल एक मुकाम होगा
तुम्हीं को पाने के लिए खुदा से दुआ करता हूँ
मा'बद-ए-क़ल्ब मे मैं तेरी ही इबादत करता हूँ
जिस जनम तुम मेरे हाथों की लकीरों में नहीं
उस जनम में भी मैं बस तेरा इंतज़ार करता हूँ।

