यूँ खामोशियों से चले थे ...
यूँ खामोशियों से चले थे ...


यूँ खामोशियों से चले है ,
दिल टूटा है मगर आह तक नहीं ,
रो रहा है दिल जोर जोर से मगर ,
एहसास तुम्हें भी नहीं ...
जब मिले थे हम बहारें थी ,
दिल की गलीयां खिलखिलाई थी ,
आँखों में निंद नहीं पर गीत गुनगुनाती ,
सुबह और बेकरारी में सांझ थी ...
कभी चाँद कह देते थे तुम्हें,
और चाँद में तुम्हें देखते थे ,
रात की तन्हाई बाँहों में भर लेते थे,
काटे कैसे ये दिन सवाल करते थे ...
ये क्या हो गया सवाल जवाब बन गया ,
तुम्हारे बीना जीना है लेकिन ,
सांसो पे एहसान तेरा नाम हो गया ,
तू नहीं फिर भी तू है मुझमें ,तन्हाई में ,
जुदाई में,
इल्जामों में ,
हालातों में ...
यूँ खामोशियों से चलें है ...