ग़ज़ल
ग़ज़ल


उम्र के मोड़ पर अक्सर गुजरे दिन याद करते हैं।
तमन्नाओं की कब्रों से क्यों मुलाकात करते हैं।
कुछ हसरतें अब भी पल्लू में बंधी है एक अरसे से।
गठान खोल ले जिंदगी ,चल नई शुरुआत करते हैं।
नहीं संभव समेटूँ हवा में उड़े आरजू के सभी पन्ने
खो गए जो भी पन्ने उन्हें अब हम याद करते हैं।
बहुत पाया बहुत खोया उम्र की सांझ होने तक।
वो कुछ खास लमहे हैं जो अब फरियाद करते हैं।
सुनहरे चंद लम्हे है और बिखरी कड़वी सी यादें हैं
पकड़ने पांव दौड़े हैं कोशिशें कांपते हाथ करते हैं।
न अब सुनने को है कोई और कहने बहुत कुछ है।
अब हम यादों में जीते हैं उन्हीं को याद करते हैं।