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Yuvraj Gupta

Romance

5.0  

Yuvraj Gupta

Romance

तुम

तुम

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गीले बालों को सुखाने

जब भी छज्जे पर आती हो तुम

ख़्वाब हकीकत में तब्दील

नींद आँखों से हो जाती है गुम


होश समेटते, गुरूर चढ़ाते

सबसे पहले छज्जे पर पहुँच भी जाएँ

सलीके से बनाकर बालों का जूड़ा

तब तक तो नीचे भी चली जाती हो तुम


तुम्हारे जाने पर

अलविदा पलकें गिरा कर

तुम्हारे आने पर

स्वागत पलकें बिछाकर

हमारी कोशिशों को हर दफा

कैसे नजरअंदाज कर पाती हो तुम


तेरी पलकों पर बिखरा काजल

खबर दिन ढलने की दे जाता है

हर रात गुज़र जाती है अमावस्या सी

क्यूंकि चाँद तो कमरे में छुप जाता है


उजले दिन तो मेहरबानी है रब की

रात उजागर करने क्यों नहीं आती हो तुम !




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