तुम मेरे हो
तुम मेरे हो
नीर की उस बूँद के सीपी में गिरने से लेकर,
स्वाति नक्षत्र की रजत वेला में मोती बन ढल जाने तक,
और अब मोती की उस उजली आभा के,
चहुँ ओर प्रदीप्त होने पर भी,
हर क्षण तुम मेरे थे, मेरे हो, मेरे रहोगे!
उस आदि क्षण से लेकर,
जब बीज गिरा था मिट्टी की कोख में,
और धरा चीर कर अंकुर प्रस्फुटित हुआ था,
और अब पर्ण के पुष्पित और
पल्लवित होने के सफर तक,
मेरी मंजिल तुम थे, तुम हो, तुम रहोगे !
समय चक्र की अविरल धारा में,
उषा काल से मध्य रात्रि के अनगिन क्षणों में,
दिन रात्रि के अनवरत चक्र में,
ऋतुओं की अनुभूति में,
विपदा की सहानुभूति में,
मेरी स्मृति में सिर्फ एक तुम थे,
तुम हो, तुम रहोगे !