तुम चाहते तो
तुम चाहते तो
तुम चाहते.... तो अपने सारे...
तर्क, कुतर्क काट सकते थे...
तुम चाहते... तो... मुझसे....
सीधा संपर्क साध सकते थे.....
तुम चाहते... तो.. तोड़ कर....
अपनी तटस्थता.....
बढ़ा सकते थे... मुझसे.. और..
और... और.. घनिष्ठता....
तुम चाहते... तो... छोड़ कर....
अपनी हठधर्मिता.....
परवान चढ़ा सकते थे... और..
और... और... अपनी मित्रता....
तुम चाहते... तो... अपने एक तरफा...
उत्पन्न तनाव को....
जला कर अलाव में... बढ़ा सकते थे....
आपसी लगाव को.....
तुम चाहते.... तो.... पाट सकते थे...
गहरी खाई को...
तुम चाहते... तो... हटा सकते थे...
निर्मल जल से काई को.....
तुम चाहते..... तो... सब कुछ....
हो सकता था....
और तुम्हारा... वो रेडरोज.....
मेरा हो सकता था.....
पर.... अब वो सारे पन्ने.....
अतीत हो गए....
वो पल... जिनमें.....
कुछ हो सकता था....
सब व्यतीत हो गए.....
तुम चाह कर भी.... मुझे....
चाह नहीं पाए....
क्योंकि प्रेम....तटस्थता, हठधर्मिता, तनाव.....
दिलों की खाई से नहीं....
सरल हो कर... जीता जाता है.....
काश! समय रहते जान पाते तुम......
कि.....
साल का एक दिन.....
प्रेम के नाम भी होता है...
जिसे कमाने के लिए....
सालों-साल की जाती है तपस्या......
फिर मिलते हैं समाधान भी...
और मिट जाती हैं, सभी समस्या.....