मैं एक नारी हूँ
मैं एक नारी हूँ


मैं तो चाहती थी....
तुम्हें एकाधिकार देना..
पर तुम्हें.....
और, और, और की भूख व्याप्ती रही....
और...फिर मैं भी सिमटती गई खुद में,
और तुम्हें....
रोज....थोड़ा-थोड़ा त्यागती रही...
न मैं ही दबी एहसानों तले,
न तुम ही दबे एहसासों तले,
तुम हो गए खुद में मसरूफ
और मैं खुद के वजूद को
तलाशती रही....
और....फिर मैं भी सिमटती गई खुद में,
और तुम्हें....
रोज.....थोड़ा- थोड़ा त्यागती रही
न तुम ही शहजादे हुए
,
न मैं ही राजकुमारी हुई,
तुम खोए रहे ख्यालों में अपने
और मैं अपने ख्यालों को
हकीक़त में उतारती रही
और....फिर मैं भी सिमटती गई खुद में,
और तुम्हें...
रोज....थोड़ा- थोड़ा त्यागती रही..
न शून्य हुआ भाव मेरा,
न तुम्हें ही खला अभाव मेरा,
तुम चलते रहे औरों के प्रभाव में
और मैं स्व-भाव को निज में
तराशती रही.....
और....फिर मैं भी सिमटती गई खुद में,
और तुम्हें.
रोज....थोड़ा- थोड़ा त्यागती रही..