तुम बिन अधूरा है परिवार
तुम बिन अधूरा है परिवार
अहमियत न समझ, छोड़ कर अपना परिवार,
सुकून की तलाश में निकल पड़ता है कई बार,
समझ नहीं पाता इंसान, सच्चा सुकून तो यहीं,
रोक-टोक कोई दीवार नहीं अपनों का है प्यार।
बिना सोचे समझे ही, छोड़ जाते हैं अपनों को,
बिखेर देते हैं, माँ-बाप के आँखों के सपनों को,
इनको परिवार का महत्व, तब समझ में आता,
जब मरहम नहीं लगाता कोई इनके ज़ख्मों को।
करूण स्वर में, दिल से निकल रही यही पुकार,
तुम बिन अधूरे हम यहाँ, अधूरा है यह परिवार,
ख़त्म ना हो जाए किसी दिन, साँसों का सफ़र,
और तुम्हारे हिस्से का, तुम्हें दे न सके हम प्यार।
लौट आओ अब, कि ये घर आवाज़ लगाता है,
क्यों करते हो अनसुना, कब से तुम्हें बुलाता है,
क्या सुकून है आखिर, यूँ तन्हा- तन्हा जीने में,
सब अपने ही यहाँ कौन पराया तुम्हें कहता है।
छोटी-छोटी बातों पे रूठ कर जाया नहीं करते,
हम भी है साथ तुम्हारे, थोड़ा विश्वास तो करते,
अपने हो नहीं जाते पराए थोड़ी सी अनबन से,
पुकारती है हर दीवार, घर क्यों नहीं लौटा आते।
क्या परवाह नहीं उनकी जिनको पीछे छोड़ गए,
तुम बिन सूना-सूना है आँगन क्यों मुंह मोड़ गए,
अधूरा है हर त्यौहार, हर खुशी यहाँ तुम्हारे बिना,
क्यों अपनों को यादों के साए में छोड़ चले गए।
दादा दादी, चाचा चाची, सब तुम्हारे अपने यहाँ,
परिवार है तुम्हारा ये, यही है तुम्हारा सुंदर जहाँ,
हम सबकी कड़वी बातों में, जो प्यार छुपा हुआ,
अजनबी इस दुनिया में, तुम्हें और मिलेगा कहाँ।
किस्मत वालों को ही तो मिलता है ऐसा परिवार,
लौट आओ तुम्हें पुकार रहा है, हम सबका प्यार,
तुम्हारे इस कदर जाने से, जो तड़प है आँखों में,
पल भर के लिए ही सही, आकर देखो एक बार।