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Sandeep kumar Tiwari

Romance Tragedy

3.5  

Sandeep kumar Tiwari

Romance Tragedy

तुम भी झूठी हो

तुम भी झूठी हो

2 mins
969


हृदय की गहराई में, प्रेम का बिज बोया था 

मेरे आँसुओं से तुमने, कभी दामन भिगोया था

भूल गई वो दिन! जब मुंडेर तले बैठकर तुमने,

घंटों तक टकटकी निगाहों से, मेरा बाट जोया था

मै एक दिन तुझमे समा जाऊंगी,

तुम्हीं ने कहा था!

हे प्रियंवद! मै तुम्हें ही अपनाऊंगी,

तुम्हीं ने कहा था!

तुम बेतुका ख़्वाब,

शीशे की तरह टूटी हो।

तुम भी झूठी हो!


कभी कड़ी धूप में मुझपर, तुने जुल्फ लहराया था

कभी गालों पर चुंबन जड़, मेरा जुल्फ सहलाया था

उस रात तुमने तो मुझे, अपने गोद में सुलाया था

पर तेरी धड़कनों ने मुझे, रातभर जगाया था

मै तेरी रूह में समाऊंगी,

तुम्हीं ने कहा था!

देख मै तेरा दर्द मिटाऊंगी,

तुम्हीं ने कहा था!

हाँ मगर ये घाव तुम्हीं ने दिए, 

अब तुम्हीं नहीं छूती हो।

तुम भी झूठी हो!


एक रात जब चाँद, खुद पे बलखाया था 

फिर तुमने उसे, उसकी औकात बतलाया था

उस रात तो तुमने हद ही कर डाला था,

अपने अधरों का रस, मेरे अधरों पे छलकाया था

अब मैं तेरे होंठों से मुस्काऊंगी,

तुम्हीं ने कहा था!

देखो मैं तुम्हें जीना सिखलाऊंगी,

तुम्हीं ने कहा था!

अब, जब मेरा कोई नहीं 

तो तुम भी रूठी हो।

तुम भी झूठी हो!


इन अधरों से तेरा नाम, जाता ही नहीं 

मुझे और कोई चाँद, भाता ही नहीं

आँसुओं से कहा, मुस्कुराना सीख लो

ये दिल है कि, समझ पाता ही नहीं 

मैं एक दिन तुम्हें भूल जाऊंगी,

तुम्हीं ने कहा था!

देखो मैं तुमसे दूर चली जाऊंगी,

तुम्हीं ने कहा था!

ये बताओ जब तुम याद से जाती ही नहीं;

तो क्या झूठ-मूठ कि रूठी हो?

तुम भी झूठी हो!


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