तुम और बरसात की रूत
तुम और बरसात की रूत
रात का पहलू है, और बाहर बरसात की रूत है,
तुम छुप छुप कर मेरे ख़यालों में आते हो..
ख़ामोश आँखों में मेरी, तन्हाई की तीरगी है
तुम अपनी मुस्कुराहट से दिल का च़राग जलाते हो...
माना कि फ़ासला लम्बा है दर्मियाँ, पर
जितना दूर जाते हो, उतना ही क़रीब आते हो..
यादें भी तुम्हारी काम कीमिया का करतीं हैं
तपा तपा कर मेरे दिल को, सोना किये जाते हो..
न पूछना हिसाब इन बेसुकून रातों का
महक कर आग़ोश में, ख़्वाब-ए-गिराँ हुए जाते हो...
तीरगी - darkness
कीमिया- alchemy
ख़वाब-ए-गिराँ- dream maker