तटस्थता
तटस्थता
मैं अपने आसपास ऐसे कई अनगिनत चेहरे देखता हूँ....
जो सामने किसी घटनाओं में तटस्थ रह लेते है.....
अनजान बनकर वे अपने में ही मस्त रहते है...
उन्हें बिल्कुल भी फ़र्क़ नहीं पड़ता...
कभी कभी मुझे भी लगता है कि मैं भी कुछ ऐसा ही बनूँ....
बस खामोश रहकर जो घट रहा हो उसे बस देखता रहूँ...
कोई आवाज़ दे तो बस अनसुना कर दूँ....
मेरा मन न जाने कितने काश और कशमकश में उलझ जाता है...
एक मन मुझे तटस्थ होने के लिए जस्टिफाई भी करने लगता है....
क्योंकि वह जानता है वक़्त की कमी और मेरी मसरूफ़ियत भी...
लेकिन दूसरा मन मुझे धिक्कारने लगता है.....
क्योंकि वह मेरे संघर्ष के दिनों को जानता है....
जब तब वह मुझे स्वार्थी और खुदगर्ज होने के ताने देता है.....
कशमकश और ढेर सारे काश के बीच मैं अंतरात्मा की लड़ाई हार जाता हूँ ....
क्योंकि अब मैं बस एक आम इनसान ही रह गया...
कोई बेजान पुतला न बन सका.....
